भगवान बुद्ध ने देवकन्या के रोने के शब्द को सुनकर, उसके समक्ष प्रकाश फैला और सामने बैठे हुए उपदेश करने के सामान, कहा – “देवधीते, मेरे पुत्र कश्यप का रोकना कर्त्तव्य है, किन्तु पुण्य चाहने वालों का पुण्य कर्मो को करते ही रहना चाहिए. पुण्य करना इस लोक और परलोक, दोनों जगह सुखदायक है.” और निम्नलिखित गाथा को कहा –
“पुण्यन्चे पुरिसो कयिरा कयिराथेनं पुनप्पुनं, तम्ही छन्दं कयिराथ सुखो पुण्यस्स उच्ययो”
अर्थात्, यदि मनुष्य पुण्य करे, तो उसे बार बार करे. उसमे रत होवे, क्योंकि पुण्य का संचय सुखदायक होता है.
Posts Tagged: बुद्ध
आत्मनिष्ठा से अभय आता है और अभय से आत्मानिष्ठा आती है, इसीलिये उपनिषद् कहता है – “अभयम् ब्रह्म” अभय स्थिति ही आत्मा व ब्रह्म है | किसी भी प्रकार का भय तनाव उत्पन्न करता है, और तनाव आत्मा अर्थात शान्ति सुख आनन्द से दूर ले जाता है | भय तनाव पैदा करता है, तनाव मन[…]
दुसरे का दोष देखना आसान है (मेन्डक श्रेष्ठी की कथा) एक समय भगवान बुद्ध अन्गुत्तराप में चारिका करते हुए जाकर जेतवन में विहार करते थे. मेण्डक श्रेष्ठी भगवान के आगमन को सुनकर दर्शनार्थ जाने लगा. मार्ग में तैर्थिकों ने उसे देख भगवान् के पास जाने से रोकने के लिये कहने लगा – “क्यों तुम क्रियावादी[…]
Recent Comments