अध्यात्म साधना के कुछ निम्नलिखित अतिआवश्यक अंग हैं, जिनके बिना आत्मस्थिति असंभव होती है।
देहात्मबुद्धि
देहात्म बुद्धि का त्याग और आत्म बुध्दि में स्थिति अध्यात्म साधना का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और आवश्यक प्रक्रिया है। देह में आत्मबोध कि मैं यह शरीर हूं, जिसे भूख प्यास लगती है, जो सोता है, जो दर्द महसूस करता है, जो कभी बीमार पड़ता है, कभी स्वस्थ रहता है, जो एक दिन मृत्यु को प्राप्त होता है, इन सभी विचारों का सदा के लिए परित्याग अत्यंत आवश्यक है, इसके बिना आत्मस्थिति असंभव है।
व्यक्तित्व बुद्धि
देह बुद्धि के साथ ही आती है, व्यक्तित्व बुद्धि कि मैं पुरुष या स्त्री हूं, मेरा अमुक नाम है, मेरी जन्मतिथि अमुक है, मैं अमुक जाति, देश, समुदाय या स्थान से संबंध रखता हूं। मैं किसी का पुत्र व पुत्री, भाई व बहन, पिता व माता, पति व पत्नी, अथवा कोई संबंधी हूं। इस व्यक्तित्व बुद्धि का परित्याग भी अतिआवश्यक है, अन्यथा आत्मस्थिति असंभव है।
प्राण बुद्धि
देह बुद्धि और व्यक्तित्व बुद्धि के परित्याग से भी आत्मस्थिति नहीं आती। व्यक्तित्व बुद्धि और आत्म बुध्दि के बीच आती है प्राण बुद्धि, जो यह समझती है कि मैं जीव हूं, जो बद्ध है और जिसे मुक्ति चाहिए, वस्तुतः ऐसा है भी। बद्ध या मुक्त आत्मा नहीं बल्कि प्राण होता है। यह प्राण ही जन्म जन्मांतर से जीवन यात्रा कर रहा है, विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए। कामनाएं, वासनाएं, इच्छाएं, और संकल्प, प्राण के लिए तानाबाना बुनते हैं। ये घटक ही प्राण को उत्पन्न करते हैं। आत्मस्थिति प्राण बुद्धि के परित्याग के बाद ही संभव है। यह आखिरी त्याग है आत्म प्रतिष्ठा के लिए।
आत्म बुद्धि में प्रतिष्ठा से क्लेश, चिंताओं और दुखों से मुक्ति मिलती है।
योगी आनंद, अद्वैत योग विद्यालय, नई दिल्ली, भारत
The Journey of a Yogi: From the Himalayas to Global Teaching
The path of a yogi is not one of mere physical discipline but a profound journey of self-discovery, spiritual awakening, and the transmission of ancient