असंतुलित ऐषणाओं से हमारी श्वासोच्छवास विकृत होती है, जिससे चित्त अशांत होता है, परिणामस्वरूप जप, ध्यान व भक्ति में चित्त एकाग्र नहीं हो पाता है।
चित्त की एकाग्रता के लिए विचारों की लहरों का शांत होना अति आवश्यक होता है, तभी हम ध्यान में प्रवेश कर सकते हैं, अन्यथा नहीं। ध्यान सफलता का मूल है। जो कार्य भी हम ध्यानपूर्वक करते हैं उसकी गुणवत्ता बहुत अधिक और अच्छी हो जाती है। यदि हम ध्यानपूर्वक पढ़ाई करें, सुनें, बोलें, जाप करें, अथवा भक्ति करें, तो इन सभी कार्यों का परिणाम आशातीत होता है।
विचारों की नगण्यता, प्राणायाम के द्वारा अद्भुत ढंग से हो पाती है। प्राणायाम कई तरह के हैं। हर तरह का प्राणायाम सांसों को लंबी, गहरी और दीर्घ करने के लिए होता है। जैसे ही स्वास प्रश्वास गहरी होती है, चित्त एकाग्र होने लगता है और ध्यान गहरा होने लगता है।