श्री गोरखनाथ जी ने अपने गुरुदेव श्री मत्स्येन्द्र नाथ जी से पूछा:
स्वामीजी! कोण देखना कोण विचारणा, कोण तत्त ले धरिवा सार। कोण देश मस्तक मुंडाईया, कोण ज्ञान ले उतरवा पार।
भावार्थ:
गुरुदेव! साधक को क्या देखना, क्या विचार करना, किस तत्त्व में वास करना, किसके लिए सिर मुड़ाना और किस ज्ञान को लेकर पर उतारना चाहिए ?
श्री मत्स्येन्द्र नाथ जी ने उत्तर दिया :
अवधू आप देखिबा, अनंत विचारवा, तत्त ले धारीवा सर। गुरु का शब्द ले मस्तक मुंडायबा, ब्रह्म ज्ञान ले उतरिबा पर।
भावार्थ :
हे शिष्य ! अपने आप को देखना, अनंत अगोचर को विचारना और तत्त्व स्वरुप में वास करना, गुरु-नाम सोऽहं शब्द ले मस्तक मुंडावे तथा ब्रह्मज्ञान को लेकर भवसागर पर उतरना चाहिए।
The Journey of a Yogi: From the Himalayas to Global Teaching
The path of a yogi is not one of mere physical discipline but a profound journey of self-discovery, spiritual awakening, and the transmission of ancient