महामारी कोरोना रूपी राक्षस की रोकथाम व मृत्यु के लिए, शुक्ल यजुर्वेद का महामृत्युंजय, और श्री दुर्गासप्तशती में निर्दिष्ट निम्नांकित मंत्रों का विधिपूर्वक जाप और उपासना सहायक हो सकता है:
शुक्ल यजुर्वेद का महामृत्युंजय मंत्र:
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्, उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ।
मंत्र का शब्दशः अर्थ:
ॐ – सर्वव्यापक ईश्वर
त्रयंबकम- तीन नेत्रों वाले (महादेव शिव का)
यजामहे- हम यजन (यज्ञ / उपासना) करते हैं (जो)
सुगंधिम- (मीठी महक वाला) सुगंधित
पुष्टि- ऊर्जा, शक्ति, स्वास्थ्य (की)
वर्धनम – वृद्धि (करते हैं।)
उर्वारुकमिव – ककड़ी के समान (जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेल-रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है)
बंधनान् – (मृत्यु) बंधन से
मृत्योर – मृत्यु से
मुक्षीय – मुक्त कर
मा – मुझे
अमृतात- अमर कर दें।
पूरा अर्थ:
हे ईश्वर! मैं तीन नेत्र वाले महादेव शिव का यजन करता/करती हूं, जो सुगंधित ऊर्जा/शक्ति/स्वास्थ्य बढ़ाते हैं। वे मुझे ककड़ी के समान (उसके पक जाने पर बेल से आसानी से मुक्त हो जाने के समान) रोग व मृत्यु से मुक्त करके अमरता प्रदान करें।
उपर्युक्त मंत्र का आध्यात्मिक अर्थ भी है। वेदों उपनिषदों में प्राण को त्रयंबक (अंबा, अंबिका और अंबलिका) कहा जाता है। आध्यात्मिक रूप में इस मुख्य प्राण की उपासना (#प्राणोपासना) से ही रोग एवम् मृत्यु से मुक्ति मिलकर अमृतत्व की प्राप्ति होती है।
श्री दुर्गा सप्तशती का मंत्र:
ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥
अर्थ :- ॐ जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार हो।
उपर्युक्त मंत्रों का जप अनुष्ठान और उपासना करने की विधि:
जप से पूर्व निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
- जो भी मंत्र जपना हो उसका जप उच्चारण की शुद्धता से करें।
- एक निश्चित संख्या में जप करें। दिन के दौरान पूर्व और संध्या व रात्रि के दौरान उत्तर दिशा में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम मंत्रों का जप न करें। यदि चाहें तो अधिक जप सकते हैं।
- मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। यदि अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करें।
- जप काल में धूप दीप जलते रहना चाहिए।
- रुद्राक्ष की माला पर ही जप करें।
- माला को गौमुखी में अथवा ढंक कर रखें। जब तक जप की संख्या पूर्ण न हो, माला को गौमुखी व कपड़े से बाहर न निकालें।
- जप काल में शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में रखने से जाप का प्रभाव बढ़ेगा।
- महामृत्युंजय के सभी जप कुशा अथवा पवित्र आसन के ऊपर बैठकर करें।
- महामृत्युंजय जप काल में यदि संभव हो तो दुग्ध मिले जल से शिवजी का अभिषेक करते रहें या शिवलिंग पर चढ़ाते रहें।
- जिस स्थान पर जपादि का शुभारंभ हो, वहीं पर आगामी दिनों में भी जप करना चाहिए।
- जपकाल में ध्यान पूरी तरह मंत्र में ही रहना चाहिए, मन को इधर-उधर न भटकाएं।
- जपकाल में आलस्य व उबासी को न आने दें।
- उपासना अनुष्ठान के दिनों मिथ्या बातें न करें।
- जपकाल अनुष्ठान में यौन सेवन न करें।
- जपकाल अनुष्ठान में मांसाहार त्याग दें।
परमेश्वर से प्रार्थना है कि आपकी उपासना अनुष्ठान विधिपूर्वक संपन्न हो और फलदायी हो! ????️????
- योगी आनंद, संस्थापक – अद्वैत योग विद्यालय, नई दिल्ली