शीलवानों के मार्ग को मार नहीं जान पाता (गोधिक स्थविर के परिनिर्वाण की कथा)
राजगृह के इसिगिली पर्वत की कालशिला पर विहार करते समय आयुष्मान गोधिक एक रोग के कारण छः बार जब ध्यान को प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए भी ध्यान को प्राप्त नहीं कर सके, तब उन्होंने बाल बनाने वाले छुरे से अपनी गर्दन रेत कर अपनी आत्महत्या कर ली. आत्महत्या करते समय उन्होंने अर्हत्व प्राप्त कर लिया। भगवान बुद्ध ने दिव्यचक्षु से उनके इस कृत्य को देखा और भिक्षुओं के साथ वहां पधारे. आयुष्मान गोधिक का मृत शरीर वहां विछावन पर पड़ा था. कहते हैं उस समय पापी मार भी यह खोजता हुआ इधर उधर विचार रहा था की गोधिक का पुनर्जन्म कहाँ हुआ है? भगवान ने उसे समझाया और कहा – “ऐ पापी मार! गोधिक कुलपुत्र के उत्पन्न होने के स्थान को तुम्हारे सामान सैकड़ों हजारों भी नहीं देख सकते.” कहकर इस गाथा को कहा – “तेषां सम्पन्नशीलानं अप्रमाद विहारिणाम, सम्मप्रज्ञा विमुत्तानं मारो मग्गं न विन्दति। ” अर्थात, वे जो शीलवान हैं और अप्रमादी (निरालस) हो विहरने वाले सम्यक प्रज्ञा द्वारा विमुक्त हो गए हैं, उनके मार्ग को (पापी) मार नहीं जान पाते.
उद्धरण – पुप्फग्गो, धम्मपद