Try to be True Spiritual one, and be Unique
Being true Spiritual one is to be a true and unique channel of Immense wisdom, energy, prosperity, love and greatness. You can not manifest the
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Vashisth Guha or Gufa (Cave) is an ancient cave where great Sage Vashistha meditated. As per Hindu Mythology, Sage Vashistha was a manas putra (born
भगवान बुद्ध ने देवकन्या के रोने के शब्द को सुनकर, उसके समक्ष प्रकाश फैला और सामने बैठे हुए उपदेश करने के सामान, कहा – “देवधीते, मेरे पुत्र कश्यप का रोकना कर्त्तव्य है, किन्तु पुण्य चाहने वालों का पुण्य कर्मो को करते ही रहना चाहिए. पुण्य करना इस लोक और परलोक, दोनों जगह सुखदायक है.” और निम्नलिखित गाथा को कहा –
“पुण्यन्चे पुरिसो कयिरा कयिराथेनं पुनप्पुनं, तम्ही छन्दं कयिराथ सुखो पुण्यस्स उच्ययो”
अर्थात्, यदि मनुष्य पुण्य करे, तो उसे बार बार करे. उसमे रत होवे, क्योंकि पुण्य का संचय सुखदायक होता है.
मन्त्रों में अनंत शक्ति होती है. हरेक मंत्र का कोई न कोई द्रष्टा होता है, जिन्होंने उस मंत्र को गहन ध्यान की अवस्था में साक्षात्कार किया, जिनके अक्षरों में अन्तर्निहित अपरिसीम शक्ति प्राप्त की जा सकती है .
“आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यो” – बृहदारण्यक उपनिषद
आत्मा के बारे में श्रवण, मनन और ध्यान के द्वारा जो एकत्व का अनुभव करने की चरम अवस्था है उसे निदिध्यासन कहते हैं।
Some most precious moments along with my Baboojee and his dear friends of his native village, Padma, Madhubani (Bihar), captured on 2nd September 2015, during
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Being true Spiritual one is to be a true and unique channel of Immense wisdom, energy, prosperity, love and greatness.
Vashisth Guha or Gufa (Cave) is an ancient cave where great Sage Vashistha meditated. As per Hindu Mythology, Sage Vashistha
भगवान बुद्ध ने देवकन्या के रोने के शब्द को सुनकर, उसके समक्ष प्रकाश फैला और सामने बैठे हुए उपदेश करने के सामान, कहा – “देवधीते, मेरे पुत्र कश्यप का रोकना कर्त्तव्य है, किन्तु पुण्य चाहने वालों का पुण्य कर्मो को करते ही रहना चाहिए. पुण्य करना इस लोक और परलोक, दोनों जगह सुखदायक है.” और निम्नलिखित गाथा को कहा –
“पुण्यन्चे पुरिसो कयिरा कयिराथेनं पुनप्पुनं, तम्ही छन्दं कयिराथ सुखो पुण्यस्स उच्ययो”
अर्थात्, यदि मनुष्य पुण्य करे, तो उसे बार बार करे. उसमे रत होवे, क्योंकि पुण्य का संचय सुखदायक होता है.
मन्त्रों में अनंत शक्ति होती है. हरेक मंत्र का कोई न कोई द्रष्टा होता है, जिन्होंने उस मंत्र को गहन ध्यान की अवस्था में साक्षात्कार किया, जिनके अक्षरों में अन्तर्निहित अपरिसीम शक्ति प्राप्त की जा सकती है .
“आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यो” – बृहदारण्यक उपनिषद
आत्मा के बारे में श्रवण, मनन और ध्यान के द्वारा जो एकत्व का अनुभव करने की चरम अवस्था है उसे निदिध्यासन कहते हैं।
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Sri Yogi Anand is an ordained Yogi, Yoga Meditation Master, Writer, eloquent Speaker and Founder of Adwait Yoga School.