Sri Yogi Anand - Founder of Adwait Yoga School

वैदिक मन्त्रों द्वारा उद्देश्य प्राप्ति

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मन्त्रों में अनंत शक्ति होती है. हरेक मंत्र का कोई न कोई द्रष्टा होता है, जिन्होंने उस मंत्र को गहन ध्यान की अवस्था में साक्षात्कार किया, या यूँ कहें कि उस मंत्र की जो शक्ति होती है उसका साक्षात्कार कर उस शक्ति का आगान व आवाहन करने के लिए उन्होंने किसी छंद में शब्दों को संरचित कर एक मंत्र का निर्माण किया.

मन्त्र शब्द दिवादि और तनादिगणीय तथा सम्मानार्थक ’मन् ’ धातु से ’ष्ट्रन’ (त्र) प्रत्यय लगकर बनता है जिनके व्यत्पत्ति लभ्य अर्थ भिन्न प्रकार से किये जा सकते हैं। मंत्र शब्द के गर्भ में मनन की परिव्याप्ति है। शब्द, शब्द के मूल अक्षर और बीजाक्षर से मन्त्रात्मक विद्या का विकास हुआ जो अक्षरों में अन्तर्निहित अपरिसीम शक्ति का द्योतक है। इसके अलावा मंत्र की यह भी परिभाषा है – ‘मननात त्रायते य इति मन्त्रः’ जिसके मनन से रक्षा होती है, उसे मंत्र कहते हैं .

मंत्र के प्रकार 

मंत्र कई प्रकार के होते हैं – वैदिक, तांत्रिक, पौराणिक, साबर, इत्यादि . वैदिक मंत्र सबसे शुद्ध, सुरक्षित एवं सात्विक होते हैं . तांत्रिक मंत्र बहुत प्रभावी होते हैं, परन्तु यदि सही ढंग से प्रयोग नहीं किया गया तो उसके दुष्परिणाम भी हो सकते हैं . पौराणिक मंत्र माध्यम गुण, प्रभाव व स्वभाव के होते हैं . साबर मंत्रो का अविष्कार नाथ संप्रदाय में हुआ, जो बहुत प्रभावी होते हैं, यदि श्रद्धा के साथ प्रयुक्त किया जाय तो .

मंत्र जप करने के तीन ढंग होते हैं – १. वाचिक, २. उपांशु, और ३. मानसिक.

जिस मंत्र का जप करते समय ओष्ठ और जिह्वा को क्रियान्वित कर मुख से ध्वनि उत्पन्न होती है और जिसे दूसरा सुन पाए, उसको वाचिक जप कहते हैं। जो मंत्र ओष्ठ और जिह्वा के द्वारा जपा जाता है, परन्तु उसे कोई सुन ना सके, उसे उपांशु जप कहते हैं। और जिस मंत्र का जप मौन रहकर, ह्रदय से किया जाए, उसे मानसिक जप कहते हैं।

उद्देश्य के अनुसार मंत्र जप हेतु माला

शंख या मणि की माला धर्म कार्य हेतु उपयुक्त है, कमल गट्टा की माला सर्व कामना व अर्थ सिद्धि हेतु उपयोग की जाती है, रुद्राक्ष की माला से किए हुए मंत्र का जाप संपूर्ण फल देने वाला होता है। मोती मूँगा की माला से सरस्वती के अर्थ जाप करें।   

इसके अलावा वशीकरण में मूँगा, बेज, हीरा, प्रबल, मणिरत्न; आकर्षण में हाथी दाँत की माला; मारण में मनुष्य की या गधे के दाँत की माला, और कुछ तांत्रिक कर्मों में सर्प की हड्डियों की माला का भी प्रयोग होता है।

माला के अभाव में हाथ की उंगलियों के मणिबंधो पर भी गिन कर जप किया जा सकता है .
विधि 

मंत्र जप करने हेतु दिन में पूर्वाभिमुख होकर, और सायंकाल अथवा रात्रिकाल में उत्तर दिशा की और मुख कर, पद्मासन (उत्तम), वज्रासन या सिद्धासन (मध्यम), या सुखासन (सामान्य) में रीढ़ सीधी कर बैठें, और पहले कुछ प्राणायाम जैसे – कपालभाती, अनुलोम-विलोम, उज्जायी, शीतली, भ्रामरी, करें जिससे चित्त शांत और एकाग्र होगा. फिर जिस मंत्र का जप करेंगे उसका उपस्थान करें अर्थात उस मन्त्र का ऋषि, छंद, देवता और उद्देश्य, का उच्चारण करते हुए स्मरण करें, तत्पश्चात उस मन्त्र का १०८ बार जप करें.

कुछ वैदिक मंत्र जो अत्यंत उपयोगी हैं 
१. तीक्ष्ण, कुशाग्र, तेज बुद्धि, एवं ब्रह्मज्ञान के लिए निम्नलिखित गायत्री मंत्र का जप अत्यंत फलप्रद है –
मंत्र – ॐ भूर्भुव स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं, भर्गो देवस्य धीमहि, धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

हिन्दी में भावार्थ : उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

ऋषि – विश्वामित्र, छंद – गायत्री, देवता – सविता, उद्देश्य – उपर्युक्त
२. रोग निवारण, अच्छे स्वास्थ्य के लिए, महामृत्युंज मंत्र-
मंत्र – ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ।

हिन्दी में भावार्थ : तिन दृष्टियों से युक्त रुद्रदेव की हम उपासना करते हैं, जो जीवन में सुगंधि और पुष्टि वर्द्धक हैं । जिस प्रकार पका हुआ फल डंठल से स्वयं अलग हो जाता है, उसी प्रकार हम रोग जो  मृत्युकारक हो सकता है, उस भय से मुक्त हों |

ऋषि – वशिष्ठ, छंद – विराट ब्राह्मी त्रिष्टुप, देवता – रूद्र, उद्देश्य – रोग निवारण एवं सुस्वास्थ्य प्राप्त्यर्थं
३. घर से निकलते समय रास्ते में दुर्घटना से सुरक्षित रहने के लिए – 
मंत्र – ॐ ये पथां पथिरक्षय ऽ ऐलबृदा ऽ आयुर्युधः । तेषा गुं सहस्र योजने ऽव धन्वानि तन्मसि ॥

हिन्दी में भावार्थ : जो विविध मार्गों के पथिकों के रक्षक हैं और अन्न से प्राणियों को पुष्ट करनेवाले तथा जीवन पर्यंत संग्राम में जूझनेवाले हैं, उन सब रुद्रगणों के धनुष प्रत्यांचाहीन करके हमसे सहस्र योजन दूर स्थापित करें |

ऋषि – कुत्स, छंद – निचृत आर्षी   अनुष्टुप, देवता – बहुरूद्रगण, उद्देश्य – पथ रक्षणार्थम|
४. हर तरह के कल्याण  के लिए 
मंत्र – ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः। स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः। स्वस्ति नो ब्रिहस्पतिर्दधातु ॥

हिन्दी में भावार्थ : महान ऐश्वर्यशाली इन्द्रदेव हमारा कल्याण करें, सम्पूर्ण जगत के ज्ञाता पूषादेव हमारा कल्याण करें, अनिष्टनाश करनेवाले पंखों से युक्त गरुड़देव हमारा कल्याण करें, तथा देवगुरु बृहस्पति हम सबका कल्याण करते हुए हमें सुखी बनाएं |

ऋषि – विश्वेदेवा, छंद – स्वराट बृहती, देवता – विश्वेदेवा, उद्देश्य – सर्व कल्याणार्थम|

५. धनप्राप्ति के लिए

जो लोग कमाने के बावजूद पैसे को बचा नहीं पाते हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, उनके लिए निम्न्लिक्षित ऋग्वेद का लक्ष्‍मी मंत्र अत्यंत उपयोगी है. इस मंत्र का प्रतिदिन १०८ बार जाप करने से आपकी बचत में वृद्धि होगी और आर्थिक स्थिति सुधरेगी.

मन्त्र – ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात. 
 


 

Yogi Anand Adwait

Yogi Anand Adwait

Sri Yogi Anand is an ordained Himalayan Yogi, Yoga Mediation Master, Spiritual Guru, Life Coach, Writer, Eloquent Speaker, and Founder of Adwait Foundation® and Adwait Yoga School.

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